Wednesday, 20 June 2012


सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन के 1300वे बलिदान दिवस के अवसर पर अजमेर में प.पू. सर संघचालक मा. मोहनराव जी भागवत द्वारा दिया गया उद्बोधन - 

 परम श्रद्धेय, परम वंदनीय, संत वृंद, मंच पर उपस्थित भारतीय सिंधु सभा के सभी माननीय पदाधिकारी, कार्यकर्ता, सम्मानीय अतिथि, उपस्थित नागरिक सज्जन एवं माता भगिनी। महाराजा दाहरसेन का जमाना 13सौ वर्ष पूर्व का जमाना है। आजकल दुनिया में ऐसा कहने वाले लोग मिलते हैं, कि बीती को बिसर जाओ, और जो है उसके साथ चलो, पुरानी बातें भूल जाओ, कभी कभी मेरे मन में आता है कि उनको पूछें कि आपका नाम कितने साल पुराना है, तो कोई कहता है 40 साल पूर्व रखा गया था, 50 साल पूर्व रखा गया था, 60 साल पूर्व, तो मैं कहता हूं आप तो उसको भूलते नहीं। बात बात पर अपना हस्ताक्षर उसी नाम से करते हैं। 50 साल बाद कोई आपको उसी नाम से पुकारे तो आप देखते हैं, अन्यथा नहीं देखते। तो ये बात सही है कि जमाने के साथ चलने में, कुछ बातों को बिसारना पड़ता है। लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में और मृत्यु के समय में भी याद रखनी पड़ती है। आदमी अपनी मृत्यु के क्षण में अपने सत्य स्वरूप को याद करता है तो तर जाता है। भूल जाता है जो जन्म जन्मांतर के फेरेां में फिर से फंस जाता है, और इसलिए मुझे जब पता चला, भारतीय सिंधु सभा के कार्यकर्ताओं ने कहा, वैसे उनका काम बहुत छोटा है, मैं यहां पर अपने व्यस्त सारे निर्धारित कार्यक्रमों में समय निकाल कर आया हूं। संघ शिक्षा वर्ग के प्रवास को संघ में कभी बदला नहीं जाता है, लेकिन मैंने अपने प्रवास को एक दिन कम करके यहां पर समय दिया है। इसका कारण क्या है, इसका कारण ये है, कि ये प्रसंग याद करने का प्रसंग है, और ऐसी बातों को याद करने का प्रसंग है, जिसे कभी भूलना नहीं चाहिए। महाराजा दाहरसेन का बलिदान क्यों हुआ था? वैसे तो उस समय के भारत वर्ष में अलग-अलग राज्य थे। अलग-अलग राजा थे। महाराजा दाहरसेन झगड़ा करने के बजाए संधि करा लेते, तो उनका भी जीवन बच जाता था, समर के सम्वार से हम सब बचाव उस समय हो जाता था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, वो लड़े, ऐसे भी अपने इतिहास में उदाहरण हैं कि ऐसी संधि लेागों ने की है। सिकंदर के सामने पौरस लड़ा, लेकिन आंभी ने उसके साथ संधि करदी। हम पौरस को याद करते हैं और आंभी के प्रकरण को भूल जाना चाहते हैं। कोई हमारे इतिहास में आंभी का उल्लेख करता है तो हमको अच्छा नहीं लगता, पौरस की कथा बताए तो हमारा सीना अभिमान से फूल जाता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि अभी सभी संतों ने, जिस मानवता का, जिस धर्म का उल्लेख किया, अपने जीवन के आचरण के नियम की दृष्टि से, उसके लिए भारतवर्ष खड़ा है, और लड़ाई से मुसलमान और हिंदुओं के बीच में नहीं थी, या दो राजाओं के बीच में नहीं थी। ये भूमि की लड़ाई नहीं थी। ये तो मूल्यों की लड़ाई थी। भारत वर्ष मानता है सारी दुनिया अपनी है, सारी दुनिया अपना परिवार है, ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’। भारत के बाहर के लोग ऐसा नहीं मानते। आज भी दुनिया केा एक करने की बात को लेकर भारत के बाहर के लोग चलते हैं। तब वो कहते हैं कि सारी दुनिया केा बाजार बनाएंगे। याने सबका आचरण बाजारू आचरण हेा जाएगा। ईमान को भी खरीद सकेंगे, ऐसी दुनिया बन जाएगी। भारत वर्ष को ये मंजूर नहीं है, वो ये नहीं कहता सारी दुनिया को एक बाजार बनाकर एक करें। वो कहता है सारी दुनिया को एक परिवार के आत्मीयता के सूत्र में बांधेंगे। ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ ऐसा एक विश्व खड़ा करेंगे। और जहां परिवार है वहां अलग-अलग होने के बाद भी एकता होती है। एक परिवार में 7 भाई हैं सबके स्वभाव अलग हैं। सबका अपना अपना परिवार है। सबके अपने-अपने बाल बच्चें हैं। सबका अपना-अपना कारोबार है। लेकिन सब मानते हैं कि ये सब सबका है। ये सब मेरा ही है। और मेरा जो है वो हम सबका है। उसमें विविधता में एकता रहती है। दुनिया इस एकता को देख नहीं पाती। क्योंकी उसको इन साब बातों को विविधताओं को जोड़ने वाला जो सूत्र है, वो केवल भारतीयों के पास है। भारतीय संतों ने उसको अभी तक सुरक्षित रखा है। भारत में ये व्यवस्था है। कि वो सत्य के साथ साक्षात हेाकर समाज में आम लेागों में रह कर आम लोगों के जीवन में उस सत्य को उतारने वाले संतों की पंरपरा अभी भी चल रही है। और भारत का यही काम है, सारी दुनिया जब भटक जाती है, भूल जाती है, तो याद दिलाना अपने जीवन से सिखाना, ये भारत को करना होगा। उस भारत की इस भारतीयता को, हिंदुत्व को, सनातनत्व को, नष्ट करने के लिए आक्रमण था। एक नई बात लेकर लोग आए थे कि हम ही सही है बाकी सब गलत है। 

सबको सही होना है तो हमारे ही रास्ते पर आना पड़ेगा। हम कहते हैं ऐसा नहीं है भई अपने-अपने रास्ते से चलो। मिलजुल कर रहो किसी को दुख मत पहुंचाओ, अहिंसक बनकर रहो, किसी को बदलने की कोशिश मत करो, जो बदल चाहिए वो अपने आप में करो। अच्छा है तो वो सारी दुनिया अपने आप बदल लेगी। इस तरीके से चलो ये उपदेश करने वाले हम और नहीं सारी दुनिया केा एक रंग में रंग देंगे बाकी सबको नष्ट करेंगे। हमारी ही चलेगी, हमारे ही जैसा रहना पड़ेगा। ऐसा मानने वालों की लड़ाई थी। इसलिए राजा दाहर ने ये विचार नहीं किया कि ये मेरे राज्य पर आक्रमण है। उसने ये विचार किया यह हमारी जीवन पद्धति पर आक्रमण है। ये मानवता पर आक्रमण है। ये सनातन धर्म पर आक्रमण है। ये हिंदुत्व पर आक्रमण है। उन्हेांने ऐसा विचार किया कब मुझे सपने में आकर बताया, ऐसा नहीं। ये विचार केवल पुस्तकों में नहीं था ये विचार केवल भाषणों में नहीं था। ये विचार राजा दाहर जैसे राजाओं के जीवन में था। राज्य करने की पद्धति में था। आज तो उनकी पुण्यतिथि है इसलिए उनके बलिदान का स्मरण विशेष रूप से हो रहा है, और होना भी चाहिए। लेकिन जो जीवन उन्होंने अपने देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा के लिए दांव पर लगाया। वो जीवन उसी देश, धर्म, संस्कृति के उदाहरण का प्रत्यक्ष प्रतीक था। उन्होंने कैसा राज्य चलाया? उन्होंने धर्म का आचरण कैसे किया, लेागों के और स्वयं के धर्म को बचाकर कैसे चले? लेागों में और स्वयं के जीवन में उस धर्म को बढ़ाकर कैसे चले? ऐसे ये सारे राजा थे। और इसलिए उस धर्म के मूल में जो तत्व है जिसको कोई ईश्वर कहता है, काई जड़ मानता है कोई चेतन मानता है, कोई आत्मा कहता है, काई नहीं कहता है। कोई शून्य कहता है। उस तत्व को साक्षात करने वाले लेागों के मार्गदर्शन में ये राजा चलते थे। इसलिए उनके साथ संतों के रूचियों के नाम अपरिहार्य रूप से आते हैं। इसको हम धर्मराज्य कहते हैं। धर्मराज्य यानि किसी पोथी के नियमों को मानकर चलना नहीं है। धर्मराज्य याने जिन्होंने उस तत्व को अपने जीवन में साक्षात किया है। और अपने जीवन से लेागों को सिखा रहे हैं। उनकी राय को सुनकर चलना। उस मानवता को मानकर चलना है। उन्नति सबकी करनी है, एक की नहीं है, एक के साथ सबकी, सबके साथ एक की। इस प्रकार विकास करना है। ये मानकर चलना है। ऐसा राजा दाहर का राज्य भी धर्मराज्य था, और राजा दाहर का अपना जीवन भी हिंदु गृहस्थ के धर्माचरण का उदाहरण है। और जब ये बारी आई के अब उस जीवन को फेंक देना पड़ेगा रण मैदान में। उस वैभव को उस परिवार के सुख को मिट्टी में मिला देना पड़ेगा। तभी देश की रक्षा होगी। मेरे मरने से ही लेाग जीने की प्रेरणा लेंगे। ये जब उन्होंने जाना तो इस नश्वर संसार के उस माया के खेल को उन्होंने उतना ही नश्वर मानकर अपने तलवार की नोंक पर लटका कर फेंक दिया। 

हिंदु ऐसे जीता है जब जीता है। तब जीने में रस लेकर ऐसे जीता है कि लेाग कहें कि जियो तो ऐसे जियो, और जब उस माया के खेल को अंतिम सत्य के लिए दांव पर लगाकर फेंकने की बारी है तो ऐसे फेंकता है कि जुआरी जुए का पासा भी फेंकने में थोड़ा हिचकिचाएगा। हिंदु अपने जीवन को फेंकने में हिचकिचाएगा नहीं। ये हिंदु जीवन का आदर्श बचाने के लिए राजा दाहर का बलिदान हुआ। और इसलिए राजा दाहर उनकी भूमि, उनकी प्रजा ये कौन है? ये सब भारत के हैं। आज हम लोग सिंध की उस भूमि पर नहीं हैं। भारत अखंड नहीं है लेकिन भारत है। सिंध की भूमि पर आज भी सिंधी हिंदु रहते हैं। अधिकांश लेागों को इधर आना पड़ा है। लेकिन जैसे तैसे अपने को बचाकर वहां सिंधी अपने आप को कहते हुए, और हिंदु अपने आप को कहते हुए एक व्यक्ति जब तक जीवित है तब तक वहां भी भारत जीवित है। और इसलिए मैं कहता हूं कि अखंड भारत है। भारत अखंड नहीं है, लेकिन अखंड भारत है। हम भारत को अखंड बनाएंगे। तो अखंड भारत दुनिया के वैभव केा न्यान की बुलंदि पर चढ़ कर सारी दुनिया को सुख शांति का रास्ता देने में समथ्र्य होगा। क्योंकि आखिर मैं संघ का कार्यकर्ता हूं। संपूर्ण हिंदु समाज को संगठित करता हूं। तो छोटे सम्मेलनों में हम नहीं जाते। भाषाओं के, जातिपंथ विशेष के ऐसे सम्मेलनों में जाने के हमको रूचि नहीं रहती। लेकिन यहां मैं आया हूं, क्यों आया हूं, ये बताने के लिए आया हूं। जैसे बांग्लादेश के हिंदुओं की समस्या संपूर्ण हिंदु समाज की संपूर्ण भारत वर्ष की समस्या है। जैसे कश्मीर की समस्या कश्मीरी पंडितों की समस्या संपूर्ण भारत की समस्या है। वैसे सिंध के हिंदुओं की समस्या चाहे वो यहां हो या वहां हो। वो संपूर्ण भारत की समग्र हिंदु समाज की समस्या है। ये ंिहंदु समाज के और भारत के विभाजन के कारण पैदा हुए। ये हिंदु समाज के और भारत के एकीकरण की समस्या है। और उसके वैभव संपन्नता को प्राप्त करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं की समस्या है। हमारे सिंधी भाई अगर राजा दाहर को स्मरण करते हैं। सिंधी भाषा को बचाने का प्रयास करते हैं, सिंधी की भूमि पर फिर से हम बस जाएं उसी तरह स्वतंत्र होकर अगर बस जाएं ऐसा प्रयत्न करते हैे तो वो सिंधी भाईयों के हित का प्रयत्न नहीं है वो भारत के हित का प्रयत्न है। हम सब सिंधी भाषी को लेागों केा भी और भारत वर्ष के बाकी सब लोगों को भी इसको समझना चाहिए। ये सूत्र नहीं छूटना चाहिए। भारत की हर भाषा भारतीय भाषा। भारत की हर भाषा मेरी मातृभाषा है अगर मैं वहां रहता हूं। हमारे संघ में परिचय चलता है हर बार परिचय होता है। परिचित लेागों का भी फिर से परिचय होता है। तो परिचय में कभी कभी लेाग बोलते हैं जैसा रिवाज है। मूलतः मैं यहां का रहने वाला हूं मूलतः मैं वहां का रहने वाला हूं मैं कहता हूं भई मूलतः तुम कहां के रहने वाले हो, मूलतः तो तुम भारत के रहने वाले हेा। भारत का कोई व्यक्ति कहां जाएगा, वो भारत में कहीं भी जा सकता है। सिंध से उजड़ा गया तो कहां गया हम अमरीका में नहीं गए हम भारत की ओर, कुछ लेाग गए, बाहर भी गए, लेकिन वहां जाने के बाद भी आने की चाह इधर ही रखते हैं और अधिकांश लेाग तो इधर चले आए क्यों क्योंकि ये स्वाभाविक बात है। सारा भारत मेरा घर है तो मूलतः भारत क्या है? लेकिन भारत क्या है? भारत एक भाषा नहीं है, भारत एक प्रांत नहीं है, भारत एक पंथ संप्रदाय नहीं है। सब पंथ संप्रदाय है, सब भाषा भाषी, सब प्रांत मिलकर भारत बनता है। भारत के वो अभिन्न जैसे पानी और पानी की बूंद अलग नहीं हो सकते। बूंद अलग हो गई बूंद सूख जाएगी पानी रहेगा। लेागों बूंदों का पानी नहीं कहेगे। पानी की बूंदें कहेंगे। पानी में बूंदें हैं। दिखती नहीं अलग लेकिन निकाल सकते हैं निकालने के बाद उनका अस्तित्व नहीं रहता। मिलकर रहती हैं बूंदों से ही पानी बनता है। घड़े को भरना है तो बूंद बूंद से ही भरना पड़ता है। बूंद और पानी अलग नहीं हैं। आप बूंद केा नकार के पानी को नहीं बना सकते। पानी को नकर के बूंद केा जीवंत नहीं रख सकते। और इसलिए भारत वर्ष से कोइ्र बूंद छिटक जाए, बिखकर जाए, अलग हो जाए, भारत वर्ष अधूरा है। एक बूंद पानी कम हो जाएगा। वो कभी भी पूरा पानी नहंी कहलाएगा। एक बूंद कम पानी ही कहलाएगा। और इसलिए भारत को अखंड होना आवश्यक है। और ये अपरिहार्य भी है अनिवार्य भी ये होना ही है। क्यों, कयोंकि ये नहीं रहा तो दुनिया नहीं बचेगी। दुनिया चल पड़ी गलत राह पर, सुख के पीछे। और सुख के इतने सारे प्रयोग 2000 वर्षों में कर लिए लेकिन दुनिया को सुख नहीं मिल रहा है। इसलिए सारी दुनिया के समझदार लेाग अब भारत वर्ष की ओर देख रहे हैं, कि भारत वर्ष खड़ा हो। लेकिन लंगड़ा लूला आदमी खड़ा नहीं हो सकता। दुर्बल आदमी खड़ा नहीं हो सकता। बीमार आदमी खड़ा नहीं हो सकता। वैसे बीमार देश, लंगड़ा लूला देश, दुर्बल देश खड़ा नहीं हो सकता। और इसलिए पूर्ण अंग बनकर अपने समस्त अंगों को फिर से जोड़कर भारत को खड़ा होना पड़ेगा। इस दृष्टि से आप यहां जो प्रयास कर रहे हो वो बहुत महत्वपूर्ण प्रयास है। आखिर भारत की हर भाषा भारत के स्वत्व तक पहुंचाती है। मूल एकता तक पहुंचाती है। भारत का हर प्रांत, भारत का हर पंथ संप्रदाय, भारत की हर जाति अपने में से भारत के मूल को पहुंचाती है। हर एक का सबल होना और सबल होते समय हम एक पूर्ण के घटक हैं इसका भान रखना भारत की सबलता में मदद करना है। अब अपने स्वत्व की पहचान कर रहे हैं। आप अपनी मातृ भाषा का उद्धार करना चाहते हैं, करना हि चाहिए क्योंकि बिना मातृ भाषा के आदमी माता का पुत्र नहीं बन सकता। भाषा के साथ भाव आता है। हम चाहे जितनी अच्छी अंग्रेजी बोल लेंगे। हमारे भाव जगत को हम व्यक्त नहीं कर सकते। अंग्रेजी भाषा में हमारे कई भावों के लिए शब्द नहीं हैं। जैसे अंग्रेजी के कई भावों के लिए हमारे यहां शब्द नहीं हैं। हमारे मूल्यों और जीवन के जिन मूल्यों में से अंग्रेजी भाषा आई है वो मूल्य अलग अलग हैं इसलिए कई बातें वहां हो नहीं सकती। जो हमारे यहां होती है। जो हमारे यहां हो नहीं सकती, वहां जो होती है। कोई महिला अगर वहां जाएगी तो लोग उसकी सुंदरता की प्रशंसा करेंगे, सार्वजनिक रूप से, सबके सामने, उसके भी सामने। आंखें कितनी सुंदर हैं, बदन कितना कोमल है, कपड़े कितने अच्छे फबते हैं, ऐसा कहेंगे। तो वो महिला गुस्सा नहीं होगी, लोग भी गुस्सा नहीं होंगे, महिला उल्टा लेागों को धन्यवाद देगी, थैंक यू कहेगी। हमारे यहां महिला की अनुपस्थिति में भी चार सभ्य लेागों में ऐसी चर्चा कोई करे तो लोग जूता मारेंगे। चार लेागों में पति भी अपनी पत्नी को बच्चे की मां के नाम से पुकारता है। रामू की मां को बुलाओ ऐसा कहता है। वो चार लेागों में भी अपनी पत्नी को पत्नी नहीं कहता, क्योंकि हमारी धारणा है कि समस्त महिला वर्ग मातृ वर्ग है। हम महिलाओं में माता को देखते हैं। वहां महिलाओं को एक भोग की वस्तु मानते हैं, जिसके सिवाए जीवन का उपभोग पूर्ण नहीं होता, ऐसा एक अनिवार्य साथी है, इतना ही मानते हैं। हम ये नहीं मानते हम ये मानते हैं ये जगत जननी जगदम्बा का रूप है। इसलिए कुमारी पूजन होता है। कुंवारी कन्याओं को तो चरण स्पर्श भी नहीं करते देते। लेाग उनका चरण स्पर्श करते हैं। ऐसे रिवाज अपने यहां पर हैं, अब ये मूल्यों का अंतर है। इसकेा भाषा में कहना है तो अंग्रेजी भाषा में व्यक्त नहीं कर सकते। उसके लिए हमारी ही भाषा चाहिए। हमारे भाव का विकास अगर करना हो तो हमारी मातृ भाषा को जीवित रहना चाहिए। आप यहां पर बुजुर्ग लोग बैठे हैं, उनको मुझे ये उपदेश करने की आवश्यकता नहीं। आप सिंधी भाषा को अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन अपने घर में ध्यान दीजिए, नई पीढि़ उसको भूल रही है। भूलना नहीं है, आने वाली नई पीढि़ अपने मूल निवास स्थान को नहीं भूले। अपने पूर्वजों को न भूले। अपनी भाषा को नहीं भूले। राष्ट्र इसी में से जीवित रहता है। और सिंधी भाषा की स्मृति, सिंधी भाषा का ज्ञान, सिंध की स्मृति और सिंध के महापुरूषों का इतिहास, ये भारतीय भाषा का ज्ञान है। भारतीय पूर्वजों का इतिहास है, भारत के भूभाग की स्मृति है। उसको भूल जाउंगा, तो मैं अपने कंधों को भूल जाउंगा। मैं मेरे पैर की चिंता करना भूल गया, बाकी सब अच्छा हूं और चल रहा रहा हूं। और पैरों को टेढ़ा मेढ़ा डाल दिया। तो पैर मोच खाता है और मेरे शरीर को बैठ जाना पड़ता है। बिस्तर में लेटना पड़ता है। दो तीन दिन चलने फिरने लायक नहीं रहता हूं। जब तक वो ठीक नहीं हेाता, तब तक मेरा चलना फिरना बंद हेा गया। तो सभी को याद रखना है और हमको तो विशेष रूप से याद रखना है। क्योंकि हमको सीधी वो विरासत मिली है। उस विरासत को याद रखना क्योंकि आज दुनिया में फिर से वो ही लड़ाई है। सारे दुनिया के मानव उसी लड़ाई को लड़ रहे हैं। और उनको कोई सेनापति दूसरा मिलेगा नहीं भारत के सिवा। भारत को सेनापति बनकर खड़ा होना है। सारी दुनिया में कट्टरपन और उदारता की लड़ाई चल रही है। दुनिया की जो लड़ाईयां चल रही है। वो कट्टरपन और उदारता की लड़ाई चल रही है। कपट और सरल धर्मयुद्ध की लड़ाई चल रही है। धर्मयोद्धा की और कपट योद्धा की लड़ाई चल रही है। सारी दुनिया में चल रही है। सारी दुनिया में एकांतिक कट्टरपन की दृष्टि और सबको साथ लेकर चलने वाली एक के साथ सबका और सबके साथ एक का विकास साधने वाली दृष्टि। उसकी लड़ाई चल रही है।

 सारी दुनिया में सब देशों के लोग लड़ रहे हैं। लेकिन उनको रास्ता दिखाने वाला, व्यूहरचना समझाने वाला अपने युद्ध को जीतने के लिए अपनी कला कैसे हो ये समझाने वाला सेनापति नहीं है। सेनापति देने का काम भारत वर्ष का है। तो भारत वर्ष को खड़ा होना पड़ेगा। और भारत वर्ष बिना अपनी सब भाषाओं के बिना अपने सब प्रांतों के लेागों के बिना अपने सब प्रातों के भूभाग के खड़ा नहीं हो सकता। और इसलिए आज भारत अखंड नहीं है। लेकिन अखंड भारत है। वहां के हिंदुओं के हृदय में और हमारे हृदय में सुरिक्षत है। उसको इतना बलवान बनाना है। कि अपने भौतिक रूप को भी भूमि सहित लेकर वो वैभव संपन्न, शक्ति संपन्न, समरस बनकर खड़ा हो। हमको सत्य को प्रकट करना है। हमकों और कुछ नहीं करना है। सत्य के पीछे हमारे जीवन की ताकत खड़ी रहेगी तो सत्य की विजय निश्चित है। सत्य कभी मरता नहीं। सत्य की जीवंत रहने की ताकत है। सत्य अमर है, क्योंकि सत्य ईश्वर का अंश है। ईश्वर ही सत्य है, सत्य ही ईश्वर है। लेकिन उसको साकार रूप में दुनिया में सबल होकर खड़ा रहने की उसको शक्ति चाहिए। और शक्ति उसका आचरण करने वाले मनुष्यों की शक्ति होती है। वो हम लेाग मुनष्य है। संपूर्ण हिंदु समाज है। अपने सब भाषा भाषी लेागों के साथ वो हिंदु समाज खड़ा है। अपनी विरासत को ध्यान में रखे, अपनी विरासत के जीवन को आज के अपने जीवन से फिर से जीवित करे। अपने भूमि का प्रकट करे। अपनी भूमि पर खड़ा हो। ये हो जाए तो सारी दुनिया को सुख शांति देने वाला एक सेनापति मिल जाएगा। सारी दुनिया का जीवन सुंदर हो जाएगा। सारी दुनिया का जीवन अखंड हो जाएगा। मानवता सारी एक कुटुंब के रूप में आचरण करते हुए परमात्मा की ओर कदम बढ़ाएगी। यही बात अपने संत कहते हैं। अपने संतों की इच्छा सीमित नहीं रहती है, एक भूभाग की नहीं रहती है, देश के लिए नहीं रहती है। वो कहता है संपूर्ण विश्व सुखी होना चाहिए। सर्वे तु सुखि न संतु सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्रणीं पश्चंतु मा काश्चिद दुख भाग भवेद। किसी को दुख न हो, सबको अच्छा ही देखने को मिले। द्योः शांति, अंतरिक्ष शांति, पृथ्वी शांति, शांति भी शांत हो जाए। सारे विश्व के मंगल की कामना करने वाले ऋषि मुनियों के हम वंशज हैं। उनकी विरासत को अपने जीवन में उतार कर चलना है, ऐसा चलने में संघर्ष अपरिहार्य है। भगवान सबकी परीक्षा लेता है। हमारी भी ले रहा है और लेते रहेगा। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए पेपर को कैसे देना चाहिए, उत्तर कैसे लिखना चाहिए, राजा दाहरसेन जैसे हमारे महापुरूषों ने अपने जीवन से बताया है उसको भूलना नही। ये जीवन हमको सिखाया अपने भूमि में। आप कल्पना कीजिए दुनिया में हमकेा जीना है, और अगर भूमि मिली है अरबस्तान जैसी और अगर भूमि कुछ नहीं दे रही तो हमारे सामने क्या चारा रहता? हम भी रेगिस्तान से आने जाने वाले व्यापारी काफिलों की सेवा करते, छोटे छोटे काम ईमानदारी से, सस्ते में ज्यादा समय लगाकर प्रामाणिकता से करते, क्योंकि वो कोई परमानेंट नौकरी नहीं है। आज का काम कल फिर से मिलना चाहिए। और ये नहीं करते बनता अहंकार प्रचंड है तो हाथ में तलवार लेकर उनका लूटते, हम लुटारू होते तो हमको भी लूटने वाले पैदा होते, तो हमको सदा तैयार रहना पड़ता। ऐसे ही हमारा स्वभाव बनता। हमारा स्वभाव ऐसा नहीं बना, क्यों नहीं बना? हिमायल की दोनों भुजाओं में सागर पर्यन्त फैली यह हमारी भारत भूमि विविधता से भरी हुई है। सब कुछ देती है, सबको देती है, सबके लिए पर्याप्त है। लड़ाई झगड़े करने की जरूरत नहीं है अपनी मेहतन करो, अपनी भूमि में। खूब कमाओं, खूब खाओ, सबको देते जाओ। बाहर से आए दो चार लोग तो हम पूछते नहीं तुम्हारी भाषा क्या है, तुम्हारा पंथ संप्रदाय क्या है? क्योंकि हमको विविध पंथ संप्रदायों में जीने की आदत है। विविध भाषाओं के बोलने वाले हम सब लेाग एक कुटुंब के नाते इकट्ठा रह सकते हैं। ये हमारी आदत है। हम उनको भी नहीं पूछते, आओ बसो, तुम भी बसो, तुम भी खाओ। हमको मतांतरण करने की जरूरत नहीं है। सारी दुनिया मिलकर कैसे चल सकती है, इसका नमूना हमारा जीवन है, हमारे जीवन की विरासत है। क्यों, क्योंकि हमारी भूमि ऐसी है। उस मातृ भूमि को नहीं भूलना, उसके बिना हमारा धर्म संस्कृति भी नहीं है। क्योंकि उसी ने हमको इस दिशा में भेजा। उसी ने हमको कहा कि बिना लड़ाई झगड़े के अगर जीवन चलता है तो क्यों खतरे में पड़ते हो? क्यों अपने मन को खराब करते हो कटुभावनाओं से। सत्य पर चलो, अहिंसा पर चलो, प्रेम से रहो, मिलजुलकर चलो, ऐसा करते करते हमने सारी दुनिया के मूल को, ईश्वर केा साक्षात कर लिया। उस भूमि का प्रताप है। वो जगत जननी माता हमारा पेाषण केवल देह का नहीं करती, हमारे मंदबुद्धि स्वभाव को भी उसी ने हमको दिया है। इसलिए हम भारत माता कहते हैं। उस भूमि को भूलना नहीं, उसका एक अंग उधर है आज। अपने बाजुओं के पुरूषार्थ पर कल उसको वापस लाएंगे। जैसा वापस ला सकते हैं, वापस लाएंगे। प्रेम से आ सकता है प्रेम से आएगा, नहीं संघर्ष करना पड़ेगा, संघर्ष करेगे। लेकिन पहले हम तैयार तो हो जाएं। हम याद तो रखें क्या क्या हमारा था। हम याद तो रखें कि हमारा जो था उसको हमारा ही रखने के लिए हमारे महापुरूषों ने कैसा-कैसा इतिहास रचा है। कैसे-कैसे बलिदान दिए हैं। नई पीढि़ में ये न्यान संक्रमित करना बहुत आवश्यक है। क्योंकि ये संघर्ष एक दो वर्षों का नहीं है। ये हजार वर्षों से चल रहा है। और आज मुझे लगता है मेरा अपना हिसाब है वो गलत भी हो सकता है। लेकिन मुझे लगता है कि और 50-60 साल चलेगा। उसमें विजयी होना है। तो और आगे की दो-तीन पीढि़यां इसी भावना से इस संघर्ष को करे। अपना जीवन जले। अपना जीवन जलाए। भारत वर्ष के जीवन में आज एक श्रण नजर में आ रहा है। बाकी कोई खतरा हमारे लिए नहीं है। बाकी खतरे तो हमारे यहां हजार वर्षों से नाच रहे हैं। हमने उनको अपने इतिहास में और वर्तमान में दस-दस बार पछाड़ा है। और हमकेा समाप्त नहीं कर सकते। लेकिन जिस कारण हजार वर्ष के संघर्ष के बाद भी वो नाच रहे हैं, वो हमारी अपनी दुर्बलता है। वो दुर्बलता को दूर हटाना है। हमारी अपनी कमियों को दूर करना है। और हमारी अपनी कमियों को तभी दूर कर सकेंगे, जब हमारी कुलकीर्ति का ज्ञान हमको होगा। अपने पूर्वजों का ज्ञान हमको होगा। राजा जन्मेजय के सर्प यद्न में हिंसा हो रही थी, उस हिंसा को रोकने के लिए ऋषि आए उन्होंने उसको बंद करवाया और राजा जन्मेजय के यहां कथा करवाई। उस कथा में क्या बताया? राजा जन्मेजय के पूर्वजों की कथा पांडवों, कौरवों की कथा बताई। धर्म आचरण पर कैसे दृढ़ रहना उसके लिए संघर्ष कैसे करना फिर भी मन में अहिंसा प्रेम को ही कैसे पालना, कटुता कैसे नहीं आने देना ये बताया। राजा रामचंद्र को वनवास के दिनों में ऋषियों ने कहानियां बता बताकर रघुवंश की महत्ता बताई। हनुमान जी का बल जागृत करने में, हनुमान जी को जामवंज जी ने उन्हीं की कथा सुनाई। उन्हीं के पूर्व पराक्रम का ज्ञान दिया। हमको भी अपना पूर्व इतिहास याद करना है अपने महापुरूषों को याद करना है। उनके जीवन को याद करके अपने जीवन में उतारना है। नई पीढि़ में उतारना है। इस भावना को और इस संघर्ष को आगे बढ़ाते-बढ़ाते सारी दुनिया के सुख शांति के लिए, आज हमारी दुश्मन बनकर जो शक्तियां खड़ी हैं उनकी भी भलाई के लिए, उसको यशस्वी करना है। इस दृष्टि से आपका यह प्रयास उस प्रयास में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान देने वाला प्रयास है। और इसलिए 

मैंने भारतीय सिंधु सभा के कार्यकर्ताओं ने एक-दो बार कहने पर अपेन कार्यक्रम को एक दिन कम करके यहां आना मान लिया। यहां आने पर जब मैंने देखा कि यहां सब सारे संत वृंद विद्यमान हैं तो मुझे लगा कि मैं यहां नहीं आता तो भी चलता, क्योंकि जो मुझ कहना है उसकी याद उन्होंने आपको दूसरे शब्दों में अभी मेरे सामने दी है। उनके इस संदेश को हृदयंगम कीजिए। अपने स्मृति को पूर्ण साबुत रखिए। आपने आरचण को उस स्मृति के अनुसार गढि़ए। और अपने नई पीढि़यों को उस स्मृति के संस्कारों में पालिए। अपने देश के, दुनिया के और अपने स्वयं के उद्धार का यही मार्ग है। भूलना नहीं है इसलिए इस स्मारक पर हम आए हैं। स्मरण हमको करना है, याद दिलाने का काम स्मारक कर रहा है, बहुत अच्छी तरह बना है। सारा इतिहास यहां पर है, एक बार देख लेंगे तो तरोताजा हो जाएगा। लेकिन उस इतिहास को अपने हृदय में कायम रखकर नया इतिहास रचने के लिए उन एतिहासिक महापुरूषों जैसी जीवन की प्रखरता को तेजस्विता को उत्पन्न करना अपने हाथ में है। उसको उत्पन्न करने का और नई पीढि़यों में भी उसका संस्कार डालने का संकल्प लेकर हम यहां से जाएं। संतों के आदेश केा सिरोधार्य करके उसका पालन करें इतना एक और आपके प्रति अनुरोध करता हुआ, आपका धन्यवाद करता हुआ, संतों को नमन करता हुआ मैं अपने चार शब्द सामाप्त करता हंू।

Monday, 18 June 2012

Daharsen Balidan Diwas 2012 - Part 4

'जब तक सिंध में एक भी हिंदू है, तब तक वहां पर भारत जीवित है'




अखबारों की नज़र 
'जब तक सिंध में एक भी हिंदू है, तब तक वहां पर भारत जीवित है'

अजमेर.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि पाकिस्तान स्थित सिंध प्रांत अखंड भारत का ही हिस्सा है। इस समय बांग्लादेश व कश्मीर में हिंदुओं की जैसी स्थिति है वैसे ही हालात सिंध प्रांत में भी हैं। बात चाहें कश्मीरी पंडितों की हो या फिर बांग्लादेश और सिंध में रहने वाले हिंदुओं की, ये केवल उनकी नहीं बल्कि समग्र हिंदू समाज की समस्या है। हमें एकजुट होकर इस समस्या का समाधान करना होगा। वह सिंधुपति महाराजा दाहिरसेन की 13 सौ वें बलिदान दिवस पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। 


संघ प्रमुख ने कहा कि आज भी सिंध की भूमि पर सिंधी हिंदू मौजूद हैं। जब तक वहां रहने वालों में एक भी व्यक्ति हिंदू है तो तब तक वहां पर भारत जीवित है। उन्होंने कहा कि, महाराजा दाहिर सेन ने हिंदू धर्म व संस्कृति को बचाने के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान दिया था। उन्होंने सनातन धर्म की संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष किया। भागवत ने कहा कि हमें अपने गौरवमयी इतिहास और संस्कृति को बचाने की जरूरत है, जिससे देश का गौरव वापस लौट सके। 



60 साल और लड़नी होगी लड़ाई 



भागवत ने कहा कि महाराजा दाहिरसेन के बलिदान को 13 सौ साल बीत गए। उन्होंने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास के बारे में बताना होगा। देश की संस्कृति को बचाने का ये संघर्ष हजारों सालों से चल रहा है। मुझे लगता है यह 50-60 साल और चलेगा। 



नेताओं पर नहीं संतों पर तो करना होगा भरोसा 



अखिल भारतीय सिंधी साधु समाज उल्हासनगर से आए साईं बलराम ने कहा अपने संबोधन में कहा कि अखंड भारत का सपना साकार करने के लिए हम नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। संतों पर भरोसा करना होगा। संतों को राष्ट्र की अलख जगानी होगी। उन्होंने बताया कि महाराजा दाहिर सेन के बलिदान को याद करने के लिए हमें फिर से अपनी गौरवमयी संस्कृति को वापस लाना होगा। हरिशेवा धाम भीलवाड़ा के महंत हंसराम ने राजा दाहिर सेन से लेकर बप्पा रावल तक की संघर्ष गाथा को जीवन का अंग बनाने की अपील की। पूर्व सांसद ओंकारसिंह लखावत ने कहा कि महाराजा दाहिर सेन का जीवन राष्ट्र रक्षा की नीति बनाने का अंग बन सकता है। 



मानवता को अपनाएं



दादूदयाल पीठ नरैना के पीठाधीश्वर गोपालदास ने कहा कि राष्ट्रीय अस्मिता को बचाने के वाले दाहरसेन ने अपना बलिदान दिया था। यहां उपस्थित लोग मानवता को अपनाएं। भारतीय सिंधु सेवा के प्रदेश अध्यक्ष साईं लेखराज ने कहा कि भारतीय सिंधु सभा ने संस्कृति को बनाए रखने का प्रयास किया है। स्वामी युधिष्ठिर ने कहा कि हमें हमेशा अपनी मातृभूमि से प्यार करना चाहिए और हमें सिंध पर गर्व करना चाहिए। मसाणिया भैरवधाम राजगढ़ के उपासक चंपालाल महाराज ने कहा कि देश में कई वीरों ने युद्ध भी किए। गौ रक्षा, महिलाओं के सम्मान व धर्म के लिए महाराजा दाहिर सेन ने अपना बलिदान दिया। 


समारोह में सरसंघ चालक मोहन भागवत और संतों ने दाहिरसेन स्मारक के संस्थापक एवं समारोह समिति के अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसद ओंकारसिंह लखावत की पुस्तक संसार का सिरमौर सिंध और महाराजा दाहर सेनकी पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर भागवत ने पुस्तक को नई पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण बताया। यह पुस्तक सिंधु सभ्यता और महाराजा दाहरसेन के जीवन पर आधारित है। पुस्तक में सिंधु सभ्यता की गौरव गाथा के उल्लेख के साथ-साथ वर्तमान भारत से उसके संबंध की विस्तृत व्याख्या की गई है। पुस्तक में सिंधु सभ्यता से जुड़े कई रोचक पहलुओं को भी शामिल किया गया। संघ प्रमुख ने पाथेयअंक के महाराजा दाहरसेन विशेषांक अंक व फोल्डर का भी विमोचन किया। 


दुनिया की नजर अब भारत पर 



भागवत ने कहा कि दुनिया सैकड़ों सालों से सुखों के लिए दौड़ रही है लेकिन हार चुकी है। अब उसकी नजर भारत पर है। दुनिया में कट्टरपंथ और उदारता के बीच लड़ाई चल रही है। कपट और सरलता के बीच संघर्ष चल रहा है। देश को अपनी सारी शक्ति एकजुट करनी होगी। भारत के मूल्यों को दुनिया में स्थापित करने के लिए सेनापति की भूमिका निभानी होगी। 



सिंध दर्शन करके हुए अभिभूत



दाहिरसेन स्मारक पर बने सिंध दर्शन संग्रहालय को देखकर सरसंघ चालक अभिभूत हो गए। उन्होंने कहा कि यह केवल स्मारक ही नहीं बल्कि इतिहास की जीवंतता के साथ प्रस्तुति है। सिंध दर्शन हमें गौरवशाली इतिहास को समझने और राष्ट्रधर्म के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देता है। 



हम सिंधु से कहलाए हिंदू



शिलालेख पर बताया गया कि सिंधु घाटी की सभ्यता दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता पूर्ण विकसित थी। चूंकि यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी और बाहर से आने वाले लोग को बोलते थे। इसलिए सिंधु से शब्द हिंदू में बदल गया। आगे चलकर इस सभ्यता से जुड़े लोगों को हिंदू कहकर पुकारा जाने लगा। 



ना भट्टी ना हलवाई, हजारों जीमे



न भट्टी जली और न हलवाई बैठा फिर भी हजारों लोगों को भोजन करा दिया गया। इसके लिए समिति ने कई क्षेत्रों में लोगों से इन थैलियों में भोजन पैक करके निर्धारित स्थान पर 11 बजे तक पहुंचाने को कहा था। लोगों ने समय से पहले ही भोजन पहुचा दिया था। आयोजन समिति की ओर से प्रसाद के रूप में वितरित करने के लिए साढ़े तीन सौ किलो मीठे चावल और कढ़ी बनवाई गई। 



2600 ईपू. की सभ्यता को उकेरा



स्मारक पर बने संग्रहालय में 2600 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता को इस तरह उकेरा गया कि देखने वालों का तांता लगा रहा। सिंधु सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियां और लेख जीवंत लग रहे थे। इन्हें कारीगरों ने सात महीने से ज्यादा समय लगा। संग्रहालय में सिंधु नदी के किनारे बसे शहरों को भी बखूबी उकेरा गया। संग्रहालय को आम जनता के लिए शनिवार से खोल दिया गया।



पूर्वजों और संस्कृति की विरासत को न भूलें युवा



सरसंघचालक ने अंग्रेजी भाषा और संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारत के दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है। ऐसी भाषा है जिसमें भावों का समावेश है। इसलिए जिस जगह हम रहते हैं उसे मातृभूमि कहते हैं। भागवत ने युवा पीढ़ी से आह्वान करते हुए कहा कि यदि आत्मभावों का विकास करना है तो अपनी भाषा को समझे और महत्व दें। अपने पूर्वजों और संस्कृति को नहीं भूलें और अपनी विरासत को आगे बढ़ाएं।



श्रद्धांजलि देने उमड़ा जनसैलाब : 

महाराजा दाहिर सेन स्मारक प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने सिंधुपति महाराजा दाहिर सेन को श्रद्धांजलि दी। समारोह में हजारों की संख्या में महिला, पुरुष व बच्चों ने हिस्सा लिया। 
भारतीय सिंधी साधु समाज के अध्यक्ष स्वामी बलराम, भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण दास रामचंदानी, प्रदेश अध्यक्ष लेखराज माधो, महामंत्री घनश्याम कुकरेजा ने भी संबोधित किया।
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली एवं गुजरात से लोगों ने परिवार सहित कार्यक्रम में शिरकत की। मध्यप्रदेश से आए रमेशलाल ने बताया कि दाहिर सेन के बारे में सिर्फ सुना ही था। पहली बार उन पर आयोजित किसी समारोह में हिस्सा ले रहा हूं। यहां आकर अच्छा लगा कि स्थानीय प्रशासन ने सिंधुपति महाराजा के लिए भव्य स्मारक बनाया है। महाराष्ट्र से आए गुजरात से आए हरीश भाई ने कहा कि यदि स्मारक की उचित देखभाल हुई तो यहां पर्यटन को खासा बढ़ावा मिलेगा। 
  



वापस चाहिए सिंध 


अजमेर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कहा है कि अखंड भारत का पुराना स्वरूप पाने के लिए सिंध को पुन: हासिल करना होगा। भारत को दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनना है लेकिन इसके लिए अपने समस्त अंगों को जोड़कर मजबूती के साथ खड़ा होना आवश्यक है।
शनिवार को पुष्कर रोड स्थित दाहरसेन स्मारक पर सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के 1300 वें बलिदान दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि भारत एक पंथ, एक भाषा अथवा एक प्रांत नहीं है बल्कि सभी पंथ, सभी प्रदेश एवं समस्त भाषाएं मिलकर भारत बना है। इसके लिए अखंड बनना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है। उन्होंने कहा कि सिंध में आज भी अनेक सिंधी एवं हिंदू रहते है। इस मायने में वहां आज भी भारत जिंदा है।
वहां के सिंधियों एवं कश्मीरी पंडितों की समस्या पूरे भारत की समस्या है। उन्होंने कहा कि सिंध को वापस हिन्दुस्तान में शामिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा तो वह भी करेंगे। भारत को अखंड बनाने के लिए 50-60 वर्ष और लग सकते है। लेकिन इससे पहले हमें अपनी कमियों को दूर करना होगा। अपने इतिहास, पूर्वजों, संस्कृति एवं सभ्यता की विरासत से जुड़ना होगा एवं नई पीढ़ी को इसकी महत्ता बतानी होगी।
दाहरसेन से लें सीख
भागवत ने कहा कि 1300 वर्ष पूर्व सिंध पर आक्रमण के समय दाहरसेन चाहते तो समझौता कर राजसुख भोग सकते थे लेकिन उन्होंने उसे सनातन धर्म, मानवता एवं हिंदुत्व पर आक्रमण माना और विरासत, सभ्यता एवं अखंड भारत को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हुए पूरे परिवार सहित बलिदान दिया।
दुनिया का सेनापति होगा भारत
उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में कट्टरपंथ-उदारता, कपट-सरलता के बीच लड़ाई चल रही है। बाहरी ताकतें पूरी दुनिया को बाजार बनाने का प्रयास कर रही है जबकि भारत पूरी दुनिया को एक परिवार मानता है। संतों के सान्निध्य में चलने वाली भारत की व्यवस्था पूरे विश्व के लिए मार्गदर्शक है। आने वाले समय में भारत को पूरी दुनिया के सेनापति की भूमिका निभानी होगी।
नहीं भूलें भाषा और पूर्वज
भागवत ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि बीती ताहि बिसार दें...। लेकिन इतिहास की अनेक बातों को भूलना नहीं चाहिए। नई पीढ़ी को अपनी भाषा, पूर्वज, भूभाग एवं गौरवशाली इतिहास की विरासत को हमेशा याद रखना होगा। अगर सिंधी अपने प्रदेश सिंध पर बसने का, अपनी भाषा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं तो यह भी एकतरह से सम्पूर्ण भारत को बचाने का प्रयास है।
देशभर से आए लोग
भारतीय सिंधु सभा के तžवावधान में पहली बार आयोजित इस समारोह में पूरे देश से सिंधी समाज के प्रतिनिधियों सहित अजमेर शहर से हजारों लोगों ने शिरकत की। श्रद्धांजलि समारोह को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत, दादूदयाल पीठ नरेना के पीठाधीश्वर गोपालदास महाराज, हरिसेवा धाम भीलवाड़ा के महंत स्वामी हंसराम महाराज, मसाणिया भैरवधाम राजगढ़ के उपासक चंपालाल महाराज, अखिल
भारतीय सिंधी साधु समाज के अध्यक्ष स्वामी बलराम, भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण दास रामचंदानी, प्रदेश अध्यक्ष लेखराज माधो, महामंत्री घनश्याम कुकरेजा ने भी संबोधित किया। 



Saturday, 16 June 2012

दाहरसेन बलिदान दिवस पर विशाल श्रद्धांजलि कार्यक्रम सम्पन्न


दाहरसेन बलिदान दिवस पर विशाल श्रद्धांजलि कार्यक्रम सम्पन्न


अजमेर १६ जून २०१२ . भारत की पश्चिमी प्राचीर के रक्षक सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के राष्ट्ररक्षार्थ 1300वें बलिदान दिवस के अवसर पर आज  हरिभाउ उपाध्याय नगर पुष्कर रोड स्थित दाहरसेन स्मारक पर विशाल श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया । इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक के सरसंघचालक मोहन राव भागवत मुख्य वक्ता के रूप शामिल हुए  ।



प.पू. सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने अपने उधबोधन में कहा की कहा जाता है की पुराणी बातो को भूल जाओ मगर कुछ बातें ऐसी होती है की उनको जीवन पर्यंत याद रखनी पड़ती है दाहर सेन का प्रसंग भी ऐसा ही एक है. भारत वसुधैव्कुतुम्ब्कम की भावना से चलता है. सारी दुनिया को  एक  परिवार की नजर से देखता है जबकि यूरोप इसको एक  बाजार के रूप में देखता है. दाहर सेन का जीवन भी हिन्दू आचरण का उदाहरण है. हिन्दू जीवन का आदर्श है. हम भारत को अखंड भारत मानते है सिंध में आज भी सिन्धी हिन्दू रहते हें वहां आज भी भारत जीवंत है.   कश्मीरी पंडितो  की समस्या पुरे हिन्दू समाज की समस्या है. भारतीय भाषा के साथ भाव निहित है वही विदेशी भाषा में ऐसा नहीं है. उन्होंने आव्हान किया की सिन्धी समाज अपनी भाषा तथा अपने पूर्वजो को नहीं भूले न ही सिंध के इतिहास को  भूले. भारतीय संत हमेशा विश्व में सुख शांति की बात ही करते है. 



नई पीढ़ी से उन्होंने संघर्ष के लिए तैयार रहने के लिए कहा तथा अपनी दुर्बलता एवं कमियों को दूर करने का कहा और हमको पूर्व  का इतिहास सदैव याद रखना होगा तथा नई पीढ़ी को याद दिलाने होगी. 

 वहीं दादु दयाल पीठ नरेना के पीठाधिशवर गोपालदास जी महाराज, हरिसेवा धाम के भीलवाड के महंत हसंराम महाराज, मसाणिया भैरव धाम राजगढ के उपासक चंपालाल महाराज सहित अनेक संत महात्माओ का आर्शीवाद प्राप्त हुआ.। मंचासीन  अतिथियों का स्वागत कर स्मृति चिन्ह भेंट किये गए. 

इस शुभावसर पर प. पू. सरसंघचालक तथा मंच पर उपस्थित संतो ने ओंकार सिंह लखावत द्वारा लिखित पुस्तक संसार का सिरमोर सिंध व महाराजा डाहर सेन तथा पाथेय कण के विशेषांक का विमोचन किया.

ओंकार सिंह लखावत ने विषय की प्रस्तावना प्रस्तुत की. स्वागत भाषण भारतीय सिन्धु सभा के प्रदेशाध्यक्ष लेख राज माधु ने दिया.  रायपुर शादानी स्वामी युधिष्टर लाल , सन्तप्रवर दादूदयाल पीठ नरेना के पीठाधीश्वर  गोपाल दास, उल्लाहस नगर के स्वामी हंस राम जी उदासी ने भी उधबोधन दिया. 





सर्वप्रथम प. पू. सरसंघचालक मोहन जी भागवत एवं संतो ने हिंगलाज माता के दर्शन किये तत्पश्चात सिंधुपति महाराजा दाहरसेन की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की तथा सिन्धु संग्रहालय में दीप प्रज्ज्वलन किया. वन्देमातरम से कार्यक्रम की शुरुआत हुई.  
सिन्धुपति महाराजा दाहरसेन समारोह समिति और भारतीय सिन्धु सभा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में महाराष्ट्र, छतीसगढ, मध्यप्रदेश, दिल्ली, गुजरात एवं राजस्थान के 26 जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रात:काल अजमेर पहुंचे। दाहरसेन स्मारक के संग्रहालय में सिन्धु घाटी की सभ्यता एवं सिन्ध के जन जीवन एवं धरोहर स्मृति को भव्य रूप से प्रदर्शित किया गया। स्मारक परिसर मे सिन्ध के भौगोलिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप को जमीन पर उकेरा गया ।  समारोह में सिंध दर्शन की प्रदर्शिनी और पुस्तक प्रदर्शनी भी देखने येाग्य रही.  कार्यक्रम का संचालन भारतीय सिन्धु भारतीय सभा के प्रान्त मंत्री महेंद्र कुमार तिर्थानी ने किया.

Thursday, 14 June 2012




16 जून : अजमेर , पुषकर की आवास व्यव्स्थाए 

दाधीच भवन-  प्रेम प्रकाश  आश्रम के पास  हेलोज रोड
 0145 2772431]  98287 31867
श्री ओमप्रका जी पाराशर  94146 66692
भरतपुर 1  टौंक 8 सवाईमाधोपुर 1 अलवर 8( अन्य स्थानों से भी)
प्रातः 5 बजे से चाय बिस्कुट एवं प्रात- बजे से नमकीन पोहा व चाय
  
पारीक  भवन  - प्रेम प्रकाश  आश्रम के पास
मैनेजर -  श्री शीवराज पारीक व्यवस्थापक  0145 2773453
व्यवस्था प्रमुख श्री शिव  जी वैश्णव - 9829553509
बांसवाडा 1  डूंगरपुर 1  उदयपुर 6 बसें

वैश्णव धर्मला - राजकीय हायर सेकेण्डरी विद्यालय की गली में
मैनेजर श्री संजय गोस्वामी  9783203711
व्यवस्था प्रमुख श्री अरूण जी 9828171717
बीकानेर श्री गंगानगर हनुमानगढ झुन्झुनू सीकर 1
  
यादव धर्मशाला  -बांगड स्कूल के पास पूर्ण खण्ड 
मैनेजर श्री तेजपाल चैधरी 0145 2772696    9950239634
व्यवस्था प्रमुख श्री पुश्कर नारायण भाटी 98281 73235
बाडमेर जैसलमेर पाली  8  जोधपुर 11

माली  धर्मशाला   -  बांगड स्कूल के पास पूर्ण खण्ड (यादव  धर्मशाला  के पास)
मैनेजर श्री गुलाबराय जी 9309362654
व्यवस्था प्रमुख - श्रीधर जी 9414667183
झालावाड कोटा बून्दी 1

समस्त जानकारी हेतु -
श्री नन्दलाल पंवार   9414666712   व    श्री राजेन्द्र राणावत 9413948224
श्री बालकिशन जी 94143 55669

झूलेलाल घाट पर स्नान पूजा अर्चना सुविधा उपलब्ध रहेगी जहां चाय व अल्पहार भी उपलब्ध रहेगा । श्री बालकिशन खत्री 09414300034 व ठकुर अशवनी 0145 2773069 है ।

विषेश - कृपया चाय पानी के पष्चात् प्रातः 7 बजे से झूलेलाल घाट पर तरपण पूजन अखिल भारतीय सिन्धी साधु समाज की ओर से  है ।
अल्पहार 7 से 8 बजे से पारीक भवन में तैयार होगा और वहीं वितरण है ।
अल्पहार के तुरन्त पष्चात् अजमेर के लिए रवाना होकर अजमेर घाटी उतरते ही स्मारक के पास नया प्राईवेट बस स्टैण्ड है जहां पार्किग व सुलभ व्यवस्था उपलब्ध है ।
बस के प्रमुख भोजन पैके प्राप्त करने के लिए श्री सोमरतन आर्य 9828039700 से प्राप्त करेगें ।