Monday, 18 June 2012

'जब तक सिंध में एक भी हिंदू है, तब तक वहां पर भारत जीवित है'




अखबारों की नज़र 
'जब तक सिंध में एक भी हिंदू है, तब तक वहां पर भारत जीवित है'

अजमेर.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि पाकिस्तान स्थित सिंध प्रांत अखंड भारत का ही हिस्सा है। इस समय बांग्लादेश व कश्मीर में हिंदुओं की जैसी स्थिति है वैसे ही हालात सिंध प्रांत में भी हैं। बात चाहें कश्मीरी पंडितों की हो या फिर बांग्लादेश और सिंध में रहने वाले हिंदुओं की, ये केवल उनकी नहीं बल्कि समग्र हिंदू समाज की समस्या है। हमें एकजुट होकर इस समस्या का समाधान करना होगा। वह सिंधुपति महाराजा दाहिरसेन की 13 सौ वें बलिदान दिवस पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। 


संघ प्रमुख ने कहा कि आज भी सिंध की भूमि पर सिंधी हिंदू मौजूद हैं। जब तक वहां रहने वालों में एक भी व्यक्ति हिंदू है तो तब तक वहां पर भारत जीवित है। उन्होंने कहा कि, महाराजा दाहिर सेन ने हिंदू धर्म व संस्कृति को बचाने के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान दिया था। उन्होंने सनातन धर्म की संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष किया। भागवत ने कहा कि हमें अपने गौरवमयी इतिहास और संस्कृति को बचाने की जरूरत है, जिससे देश का गौरव वापस लौट सके। 



60 साल और लड़नी होगी लड़ाई 



भागवत ने कहा कि महाराजा दाहिरसेन के बलिदान को 13 सौ साल बीत गए। उन्होंने कहा कि हमें आने वाली पीढ़ियों को अपने इतिहास के बारे में बताना होगा। देश की संस्कृति को बचाने का ये संघर्ष हजारों सालों से चल रहा है। मुझे लगता है यह 50-60 साल और चलेगा। 



नेताओं पर नहीं संतों पर तो करना होगा भरोसा 



अखिल भारतीय सिंधी साधु समाज उल्हासनगर से आए साईं बलराम ने कहा अपने संबोधन में कहा कि अखंड भारत का सपना साकार करने के लिए हम नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते। संतों पर भरोसा करना होगा। संतों को राष्ट्र की अलख जगानी होगी। उन्होंने बताया कि महाराजा दाहिर सेन के बलिदान को याद करने के लिए हमें फिर से अपनी गौरवमयी संस्कृति को वापस लाना होगा। हरिशेवा धाम भीलवाड़ा के महंत हंसराम ने राजा दाहिर सेन से लेकर बप्पा रावल तक की संघर्ष गाथा को जीवन का अंग बनाने की अपील की। पूर्व सांसद ओंकारसिंह लखावत ने कहा कि महाराजा दाहिर सेन का जीवन राष्ट्र रक्षा की नीति बनाने का अंग बन सकता है। 



मानवता को अपनाएं



दादूदयाल पीठ नरैना के पीठाधीश्वर गोपालदास ने कहा कि राष्ट्रीय अस्मिता को बचाने के वाले दाहरसेन ने अपना बलिदान दिया था। यहां उपस्थित लोग मानवता को अपनाएं। भारतीय सिंधु सेवा के प्रदेश अध्यक्ष साईं लेखराज ने कहा कि भारतीय सिंधु सभा ने संस्कृति को बनाए रखने का प्रयास किया है। स्वामी युधिष्ठिर ने कहा कि हमें हमेशा अपनी मातृभूमि से प्यार करना चाहिए और हमें सिंध पर गर्व करना चाहिए। मसाणिया भैरवधाम राजगढ़ के उपासक चंपालाल महाराज ने कहा कि देश में कई वीरों ने युद्ध भी किए। गौ रक्षा, महिलाओं के सम्मान व धर्म के लिए महाराजा दाहिर सेन ने अपना बलिदान दिया। 


समारोह में सरसंघ चालक मोहन भागवत और संतों ने दाहिरसेन स्मारक के संस्थापक एवं समारोह समिति के अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसद ओंकारसिंह लखावत की पुस्तक संसार का सिरमौर सिंध और महाराजा दाहर सेनकी पुस्तक का विमोचन किया। इस मौके पर भागवत ने पुस्तक को नई पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण बताया। यह पुस्तक सिंधु सभ्यता और महाराजा दाहरसेन के जीवन पर आधारित है। पुस्तक में सिंधु सभ्यता की गौरव गाथा के उल्लेख के साथ-साथ वर्तमान भारत से उसके संबंध की विस्तृत व्याख्या की गई है। पुस्तक में सिंधु सभ्यता से जुड़े कई रोचक पहलुओं को भी शामिल किया गया। संघ प्रमुख ने पाथेयअंक के महाराजा दाहरसेन विशेषांक अंक व फोल्डर का भी विमोचन किया। 


दुनिया की नजर अब भारत पर 



भागवत ने कहा कि दुनिया सैकड़ों सालों से सुखों के लिए दौड़ रही है लेकिन हार चुकी है। अब उसकी नजर भारत पर है। दुनिया में कट्टरपंथ और उदारता के बीच लड़ाई चल रही है। कपट और सरलता के बीच संघर्ष चल रहा है। देश को अपनी सारी शक्ति एकजुट करनी होगी। भारत के मूल्यों को दुनिया में स्थापित करने के लिए सेनापति की भूमिका निभानी होगी। 



सिंध दर्शन करके हुए अभिभूत



दाहिरसेन स्मारक पर बने सिंध दर्शन संग्रहालय को देखकर सरसंघ चालक अभिभूत हो गए। उन्होंने कहा कि यह केवल स्मारक ही नहीं बल्कि इतिहास की जीवंतता के साथ प्रस्तुति है। सिंध दर्शन हमें गौरवशाली इतिहास को समझने और राष्ट्रधर्म के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा देता है। 



हम सिंधु से कहलाए हिंदू



शिलालेख पर बताया गया कि सिंधु घाटी की सभ्यता दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता पूर्ण विकसित थी। चूंकि यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी और बाहर से आने वाले लोग को बोलते थे। इसलिए सिंधु से शब्द हिंदू में बदल गया। आगे चलकर इस सभ्यता से जुड़े लोगों को हिंदू कहकर पुकारा जाने लगा। 



ना भट्टी ना हलवाई, हजारों जीमे



न भट्टी जली और न हलवाई बैठा फिर भी हजारों लोगों को भोजन करा दिया गया। इसके लिए समिति ने कई क्षेत्रों में लोगों से इन थैलियों में भोजन पैक करके निर्धारित स्थान पर 11 बजे तक पहुंचाने को कहा था। लोगों ने समय से पहले ही भोजन पहुचा दिया था। आयोजन समिति की ओर से प्रसाद के रूप में वितरित करने के लिए साढ़े तीन सौ किलो मीठे चावल और कढ़ी बनवाई गई। 



2600 ईपू. की सभ्यता को उकेरा



स्मारक पर बने संग्रहालय में 2600 ईसा पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता को इस तरह उकेरा गया कि देखने वालों का तांता लगा रहा। सिंधु सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी कलाकृतियां और लेख जीवंत लग रहे थे। इन्हें कारीगरों ने सात महीने से ज्यादा समय लगा। संग्रहालय में सिंधु नदी के किनारे बसे शहरों को भी बखूबी उकेरा गया। संग्रहालय को आम जनता के लिए शनिवार से खोल दिया गया।



पूर्वजों और संस्कृति की विरासत को न भूलें युवा



सरसंघचालक ने अंग्रेजी भाषा और संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारत के दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है। ऐसी भाषा है जिसमें भावों का समावेश है। इसलिए जिस जगह हम रहते हैं उसे मातृभूमि कहते हैं। भागवत ने युवा पीढ़ी से आह्वान करते हुए कहा कि यदि आत्मभावों का विकास करना है तो अपनी भाषा को समझे और महत्व दें। अपने पूर्वजों और संस्कृति को नहीं भूलें और अपनी विरासत को आगे बढ़ाएं।



श्रद्धांजलि देने उमड़ा जनसैलाब : 

महाराजा दाहिर सेन स्मारक प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से आए लोगों ने सिंधुपति महाराजा दाहिर सेन को श्रद्धांजलि दी। समारोह में हजारों की संख्या में महिला, पुरुष व बच्चों ने हिस्सा लिया। 
भारतीय सिंधी साधु समाज के अध्यक्ष स्वामी बलराम, भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण दास रामचंदानी, प्रदेश अध्यक्ष लेखराज माधो, महामंत्री घनश्याम कुकरेजा ने भी संबोधित किया।
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली एवं गुजरात से लोगों ने परिवार सहित कार्यक्रम में शिरकत की। मध्यप्रदेश से आए रमेशलाल ने बताया कि दाहिर सेन के बारे में सिर्फ सुना ही था। पहली बार उन पर आयोजित किसी समारोह में हिस्सा ले रहा हूं। यहां आकर अच्छा लगा कि स्थानीय प्रशासन ने सिंधुपति महाराजा के लिए भव्य स्मारक बनाया है। महाराष्ट्र से आए गुजरात से आए हरीश भाई ने कहा कि यदि स्मारक की उचित देखभाल हुई तो यहां पर्यटन को खासा बढ़ावा मिलेगा। 
  



वापस चाहिए सिंध 


अजमेर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने कहा है कि अखंड भारत का पुराना स्वरूप पाने के लिए सिंध को पुन: हासिल करना होगा। भारत को दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनना है लेकिन इसके लिए अपने समस्त अंगों को जोड़कर मजबूती के साथ खड़ा होना आवश्यक है।
शनिवार को पुष्कर रोड स्थित दाहरसेन स्मारक पर सिंधुपति महाराजा दाहरसेन के 1300 वें बलिदान दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि भारत एक पंथ, एक भाषा अथवा एक प्रांत नहीं है बल्कि सभी पंथ, सभी प्रदेश एवं समस्त भाषाएं मिलकर भारत बना है। इसके लिए अखंड बनना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है। उन्होंने कहा कि सिंध में आज भी अनेक सिंधी एवं हिंदू रहते है। इस मायने में वहां आज भी भारत जिंदा है।
वहां के सिंधियों एवं कश्मीरी पंडितों की समस्या पूरे भारत की समस्या है। उन्होंने कहा कि सिंध को वापस हिन्दुस्तान में शामिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा तो वह भी करेंगे। भारत को अखंड बनाने के लिए 50-60 वर्ष और लग सकते है। लेकिन इससे पहले हमें अपनी कमियों को दूर करना होगा। अपने इतिहास, पूर्वजों, संस्कृति एवं सभ्यता की विरासत से जुड़ना होगा एवं नई पीढ़ी को इसकी महत्ता बतानी होगी।
दाहरसेन से लें सीख
भागवत ने कहा कि 1300 वर्ष पूर्व सिंध पर आक्रमण के समय दाहरसेन चाहते तो समझौता कर राजसुख भोग सकते थे लेकिन उन्होंने उसे सनातन धर्म, मानवता एवं हिंदुत्व पर आक्रमण माना और विरासत, सभ्यता एवं अखंड भारत को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हुए पूरे परिवार सहित बलिदान दिया।
दुनिया का सेनापति होगा भारत
उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में कट्टरपंथ-उदारता, कपट-सरलता के बीच लड़ाई चल रही है। बाहरी ताकतें पूरी दुनिया को बाजार बनाने का प्रयास कर रही है जबकि भारत पूरी दुनिया को एक परिवार मानता है। संतों के सान्निध्य में चलने वाली भारत की व्यवस्था पूरे विश्व के लिए मार्गदर्शक है। आने वाले समय में भारत को पूरी दुनिया के सेनापति की भूमिका निभानी होगी।
नहीं भूलें भाषा और पूर्वज
भागवत ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि बीती ताहि बिसार दें...। लेकिन इतिहास की अनेक बातों को भूलना नहीं चाहिए। नई पीढ़ी को अपनी भाषा, पूर्वज, भूभाग एवं गौरवशाली इतिहास की विरासत को हमेशा याद रखना होगा। अगर सिंधी अपने प्रदेश सिंध पर बसने का, अपनी भाषा को बचाने का प्रयास कर रहे हैं तो यह भी एकतरह से सम्पूर्ण भारत को बचाने का प्रयास है।
देशभर से आए लोग
भारतीय सिंधु सभा के तžवावधान में पहली बार आयोजित इस समारोह में पूरे देश से सिंधी समाज के प्रतिनिधियों सहित अजमेर शहर से हजारों लोगों ने शिरकत की। श्रद्धांजलि समारोह को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत, दादूदयाल पीठ नरेना के पीठाधीश्वर गोपालदास महाराज, हरिसेवा धाम भीलवाड़ा के महंत स्वामी हंसराम महाराज, मसाणिया भैरवधाम राजगढ़ के उपासक चंपालाल महाराज, अखिल
भारतीय सिंधी साधु समाज के अध्यक्ष स्वामी बलराम, भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लक्ष्मण दास रामचंदानी, प्रदेश अध्यक्ष लेखराज माधो, महामंत्री घनश्याम कुकरेजा ने भी संबोधित किया। 



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