Monday, 11 June 2012

दाहरसेन की शहादत से नई पीढ़ी शिक्षा लें




सिंधुपति महाराजा दाहरसेन समारोह समिति, अजमेर


दाहरसेन की शहादत से नई पीढ़ी शिक्षा लें-स्वामी हंसराम महाराज

अजमेर, 10 जून। महाराजा दाहरसेन के 1300 वें बलिदान वर्ष के कार्यक्रम में रविवार को दाहरसेन स्मारक पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में सर्वप्रथम हरिशेवाधाम के महंत स्वामी श्री हंसराम जी महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि इतिहास में महापुरुषों व शूरवीर राजाओं ने आदिकाल से समाज को नई दिशा प्रदान की है। दाहरसेन स्मारक को शूर, संत और सती तीनों का समागम बताते हुए उन्होंने महाराजा दाहरसेन और उनके परिवार के शहादत से नई पीढ़ी को शिक्षा लेने की जरूरत बताई। इस अवसर पर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष व प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष श्री औंकारसिंह लखावत ने कहा कि सिंध की भूमि ने शूरवीर राजाओं को जन्म दिया है एवं सिंधु घाटी की सभ्यता विश्व की महान सभ्यताओं में से एक है। अजमेर स्थित दाहरसेन स्मारक इतिहास की धरोहर का प्रतीक है।

इस मौके पर मुख्य वक्ता राजस्थान लोक सेवा आयोग के सदस्य श्री परमेन्द्र दशोरा ने कहा कि अपने देश की पश्चिमी प्राचीर के शासकों ने विदेश आक्रांताओं के आक्रमण से देश की रक्षा की और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने व अपने परिवार की चिंता किए बिना आहूति दे दी। आज से 1342 वर्ष पूर्व महाराजा दाहरसेन का जन्म हुआ था और मात्र 12 वर्ष की अल्पायु में उनका राज्याभिषेक हुआ। महाराज दाहरसेन ने बड़ी सूझबूझ और बहादुरी से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी छवि एक उदार व गौरक्षक शासक के रूप में भी जानी जाती है। उन्होंने अरब आक्रमण कारियों का डट कर मुकाबला किया। अंत में लड़ाई के दौरान षड्यंत्र रच कर आक्रमण कारियों ने उन्हें धोखे से मार दिया। इसके पश्चात उनकी पत्नी लाडी बाई और दोनों पुत्रियों ने भी दुश्मनों का डट कर मुकाबला किया। दशोरा ने कहा कि आज आवश्यकता है ऐसे शुरवीर राजाओं के जीवन से शिक्षा लेकर देश के सांस्कृतिक नक्शे को पहचानें और अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप बर्दाश्त न करें। 
इस अवसर पर राजकीय महाविद्यालय के हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष श्री बद्रीप्रसाद पंचोली ने दाहर शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि दाहर का मतलब ही पीड़ा हरने वाला होता है। उन्होंने दाहरसेन के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दाहरसेन महान गौभक्त थे। जब भी आक्रमण होता था तो वे गायों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देते थे। इस अवसर शिक्षाविद श्री टी. के. माथुर ने भी महाराज दाहरसेन की बहादुरी के  अनेक दृष्टांत बताए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. बी. पी. सारस्वत ने किया। 





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